मात्रा / अनुपान : 1-1 टेबलेट दिन में 2 बार रोगानुसार शहद, गाय का घी, दाडिम स्वरस अथवा तक्र के साथ दें।
गुणधर्म एवं उपयोग : इस रसायन के उपयोग से अम्लपित्त, वमन, संग्रहणी, खासी, मंदाग्नि, पेट फूलना, हिचकी आदि रोग नष्ट होते है। यह रसायन पित्त और वात जन्य विकारों को शान्त करता है। पित्त की विकृत्ति से अम्लता और तीक्ष्णता हो अथवा आमाशय या पित्तशय में पित्त कमजोरी होकर अपना कार्य करने में असमर्थ हो गया हो तो उसे सुधारता है। इसलिए सूतशेखर रस का प्रयोग अम्लपित्त में खट्टी वमन, कोष्ठ में दर्द होना, उदावर्त आदि पित्त विकृति जन्य रोगों में अधिक किया जाता हैं। यह पित्त दोष नाशक होते हुए हृदय के बल देने वाला तथा संग्राही भी है। इसलिए राजयक्ष्मा की प्रथम और द्वितीय अवस्था में तथा संग्रहणी और अतिसार आदि वातप्रधान रोगों में दस्त कम करने तथा हृदय को बल पहुंचाने के लिये इसे देते है। यह पाचक पित्त की विकृति को दूर कर जठराग्नि को प्रदीप्त कर कोष्ठ में होने वाले दर्द को दूर करता है क्योंकि ये वेदना शामक भी है।
पैकिंग : 10 टेबलेट, 25 टेबलेट।
मात्रा / अनुपान : 1-1 टेबलेट दिन में 2 बार रोगानुसार शहद, गाय का घी, दाडिम स्वरस अथवा तक्र के साथ दें।
गुणधर्म एवं उपयोग : इस रसायन के उपयोग से अम्लपित्त, वमन, संग्रहणी, खासी, मंदाग्नि, पेट फूलना, हिचकी आदि रोग नष्ट होते है। यह रसायन पित्त और वात जन्य विकारों को शान्त करता है। पित्त की विकृत्ति से अम्लता और तीक्ष्णता हो अथवा आमाशय या पित्तशय में पित्त कमजोरी होकर अपना कार्य करने में असमर्थ हो गया हो तो उसे सुधारता है। इसलिए सूतशेखर रस का प्रयोग अम्लपित्त में खट्टी वमन, कोष्ठ में दर्द होना, उदावर्त आदि पित्त विकृति जन्य रोगों में अधिक किया जाता हैं। यह पित्त दोष नाशक होते हुए हृदय के बल देने वाला तथा संग्राही भी है। इसलिए राजयक्ष्मा की प्रथम और द्वितीय अवस्था में तथा संग्रहणी और अतिसार आदि वातप्रधान रोगों में दस्त कम करने तथा हृदय को बल पहुंचाने के लिये इसे देते है। यह पाचक पित्त की विकृति को दूर कर जठराग्नि को प्रदीप्त कर कोष्ठ में होने वाले दर्द को दूर करता है क्योंकि ये वेदना शामक भी है।
पैकिंग : 10 टेबलेट, 25 टेबलेट।