मात्रा / अनुपान : 1-1 टेबलेट दिन में 2 बार रोगानुसार उचित अनुपात के साथ दें।
गुणधर्म एवं उपयोग : यह रसायन जीर्ण ज्वर तथा सप्त धातुगत ज्वर, राजयक्ष्मा जैसे रोग का शमन होने के बाद की कमजोरी, ,स्त्रियों का श्वेत और रक्त प्रदर, पाण्डु रोग, ग्रहणी रोग, अग्निमांद्य, आन्त्रक्षय, फुफ्फुस कला शोथ, बाल शोष आदि रोगों में लाभ करता है। यह जठराग्नि और धात्वाग्नि की परिपाक क्रिया को सुधारकर उनकी विकृति से होने वाले सब रोगों को दूर करता है और शरीर को बल, वर्ण युक्त तथा पुष्ट करता है। मस्तिष्क में स्फुर्ति और बल पैदा करना इसका खास कार्य है। स्त्री, पुरुष और बालकों के लिये सब ऋतुओं में यह लाभदायक है। इस रसायन द्वारा जो बल प्राप्त होता है वह स्थायी रहता है।
यह रसायन पाचक और दीपक होने से मंदग्नि के लिय भी प्रयोग किया जाता है। किसी भंयकर व्याधि से मुक्त होने के बाद धातु क्षीण हो जाने से शरीर बहुत कमजोर हो जाता है, भूख नहीं लगती, अग्नि मन्द रहती है, जो थोड़ा बहुत कुछ खाया भी जाए तो पाचक रस की उत्पत्ति न होने के कारण अजीर्ण सा बन जाता है जिससे रस रक्तादि धातुओं की पुष्टि नहीं हो पाती। ऐसी अवस्था में स्वर्ण मालिनी बसन्त के प्रयोग से बहुत लाभ होता है। स्त्रियों के रक्त प्रदर में चावल के धोवान के साथ देना लाभदायक है। स्वप्न दोष में शहद और पिप्पली चूर्ण के साथ दिया जाता है। पित्तज विकारों में जीरे का चूर्ण और आंवले के मुरब्बे के साथ दिया जाता है।
सहायक योग: अश्वगन्धा पाक, ब्रह्म रसायन, प्रवाल पिष्टी, मुक्ता पिष्टी, सितोपलादी चूर्ण
पैकिंग : 10, 25 टेबलेट।
मात्रा / अनुपान : 1-1 टेबलेट दिन में 2 बार रोगानुसार उचित अनुपात के साथ दें।
गुणधर्म एवं उपयोग : यह रसायन जीर्ण ज्वर तथा सप्त धातुगत ज्वर, राजयक्ष्मा जैसे रोग का शमन होने के बाद की कमजोरी, ,स्त्रियों का श्वेत और रक्त प्रदर, पाण्डु रोग, ग्रहणी रोग, अग्निमांद्य, आन्त्रक्षय, फुफ्फुस कला शोथ, बाल शोष आदि रोगों में लाभ करता है। यह जठराग्नि और धात्वाग्नि की परिपाक क्रिया को सुधारकर उनकी विकृति से होने वाले सब रोगों को दूर करता है और शरीर को बल, वर्ण युक्त तथा पुष्ट करता है। मस्तिष्क में स्फुर्ति और बल पैदा करना इसका खास कार्य है। स्त्री, पुरुष और बालकों के लिये सब ऋतुओं में यह लाभदायक है। इस रसायन द्वारा जो बल प्राप्त होता है वह स्थायी रहता है।
यह रसायन पाचक और दीपक होने से मंदग्नि के लिय भी प्रयोग किया जाता है। किसी भंयकर व्याधि से मुक्त होने के बाद धातु क्षीण हो जाने से शरीर बहुत कमजोर हो जाता है, भूख नहीं लगती, अग्नि मन्द रहती है, जो थोड़ा बहुत कुछ खाया भी जाए तो पाचक रस की उत्पत्ति न होने के कारण अजीर्ण सा बन जाता है जिससे रस रक्तादि धातुओं की पुष्टि नहीं हो पाती। ऐसी अवस्था में स्वर्ण मालिनी बसन्त के प्रयोग से बहुत लाभ होता है। स्त्रियों के रक्त प्रदर में चावल के धोवान के साथ देना लाभदायक है। स्वप्न दोष में शहद और पिप्पली चूर्ण के साथ दिया जाता है। पित्तज विकारों में जीरे का चूर्ण और आंवले के मुरब्बे के साथ दिया जाता है।
सहायक योग: अश्वगन्धा पाक, ब्रह्म रसायन, प्रवाल पिष्टी, मुक्ता पिष्टी, सितोपलादी चूर्ण
पैकिंग : 10, 25 टेबलेट।